हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 18.4.9

अध्याय 18 → खंड 4 → मंत्र 9 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 4
यजिष्ठं त्वा ववृमहे देवं देवत्रा होतारममर्त्यम् । अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम् ॥ (९)
हे अग्नि! आप इस यज्ञ में श्रेष्ठ कार्य करने वाले हैं. आप भजनीय (भजन करने योग्य) हैं. देवताओं में हम आप का वरण करते हैं. आप अमर व देवताओं में सर्वाधिक दिव्य देव हैं. (९)
O agni! You are going to do the best work in this yajna. You are bhajaniya (psalmist). Among the gods, we choose you. You are the immortal and most divine god among the gods. (9)