सामवेद (अध्याय 2)
सोमानाँ स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते । कक्षीवन्तं य औशिजः ॥ (५)
हे ब्रह्मणस्पति! आप सोम यज्ञ करने वाले उशिज के पुत्र कक्षीवान को प्रकाशित करने की कृपा कीजिए. (५)
O Brahmanaspati! Please illuminate The Chamber, the son of Usija, who performed the Soma Yagya. (5)