सामवेद (अध्याय 22)
इन्द्राग्नी तविषाणी वाँ सधस्थानि प्रयाँसि च । युवोरप्तूर्यँ हितम् ॥ (६)
हे इंद्र! हे अग्नि! आप हित साधने वाले हैं. आप के प्रयास सदैव शुभ कार्यो की ओर लगे रहते हैं. (६)
O Indra! O agni! You are an interest seeker. Your efforts are always engaged towards auspicious works. (6)