हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 25.1.10

अध्याय 25 → खंड 1 → मंत्र 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 1
गम्भीराँ उदधीँरिव क्रतुं पुष्यसि गा इव । प्र सुगोपा यवसं धेनवो यथा ह्रदं कुल्या इवाशत ॥ (१०)
हे इंद्र! गंभीर समुद्र को जैसे छोटे तालाब अधिक जल दे कर पोसते हैं, वैसे ही आप यजमान की मनोकामना पूरी कर के उन्हें पोसते हैं. ग्वाले जैसे गायों को घास चारा डाल कर पोसते हैं, वैसे ही यजमान इंद्र को सोमरस भेंट कर के पोसते हैं. (१०)
O Indra! Just as small ponds feed the serious sea by giving more water, you fulfill the wishes of the host and nurture them. Just as cowherds feed cows by putting grass fodder, the hosts offer someras to Indra and nurture them. (10)