सामवेद (अध्याय 25)
यथा गौरो अपा कृतं तृष्यन्नेत्यवेरिणम् । आपित्वे नः प्रपित्वे तूयमा गहि कण्वेषु सु सचा पिब ॥ (११)
हे इंद्र! आप हमारे दोस्त की तरह आइए. आप उसी ललक से आइए, जैसे प्यास से व्याकुल हिरण तालाब के पास जाता है. आप कण्वों के निकट सोमपान करने की कृपा कीजिए. (११)
O Indra! You come like our friend. You come with the same urge, just as a deer disturbed by thirst goes to the pond. Please do sompan near the kanvas. (11)