हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 25.3.1

अध्याय 25 → खंड 3 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 25)

सामवेद: | खंड: 3
अग्निं तं मन्ये यो वसुरस्तं यं यन्ति धेनवः । अस्तमर्वन्त आशवोस्तं नित्यासो वाजिन इषँ स्तोतृभ्य आ भर ॥ (१)
हे अग्नि! आप सर्वव्यापक हैं. हम आप की उपासना करते हैं. घोड़े व गाएं जिन की शरण में हैं, हम यजमानों को भी आप अपनी शरण में लीजिए. हम नित्य नियम निभाने वाले और हवि देने वाले हैं. आप हमें अन्नदान कीजिए. हम आप की उपासना करते हैं. (१)
O agni! You are omnipresent. We worship you. Horses and cows in whose shelter we are also taking the hosts in your shelter. We are always the ones who follow the rules and give courage. You donate food to us. We worship you. (1)