सामवेद (अध्याय 26)
प्रास्य धारा अक्षरन्वृष्णः सुतस्यौजसा । देवाँ अनु प्रभूषतः ॥ (१)
हे सोम! आप का रस बलवर्द्धक है. देवताओं पर अनुकूल प्रभाव डालने वाला है सोमरस की धाराएं वेगवती व द्रोणकलश में सुशोभित हो रही हैं. (१)
O Mon! Your juice is strong. The streams of Someras are adorned in Vegvati and Dronalash, which is going to have a favorable effect on the gods. (1)
सामवेद (अध्याय 26)
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा । ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम् ॥ (२)
हे सोम! आप प्रकाशमान, उपासना के योग्य, अश्व के समान वेगशाली और विद्वान् हैं. अध्वर्युगण (पुरोहित) वाणीमय प्रार्थनाओं से सोमरस को परिष्कृत करते हैं. (२)
O Mon! You are light, worthy of worship, as fast as an horse and learned. Adhvaryugana (priests) refine someras with speech prayers. (2)
सामवेद (अध्याय 26)
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम् ॥ (३)
हे सोम! आप धनवान, उपासना के योग्य, पवित्र, बहुत शक्तिशाली हैं और रक्षक हैं. आप समुद्र के समान इस पात्र को भर देने की कृपा कीजिए. (३)
O Mon! You are rich, worthy of worship, holy, very powerful and protector. Please fill this vessel like the sea. (3)
सामवेद (अध्याय 26)
एष ब्रह्मा य ऋत्विय इन्द्रो नाम श्रुतो गृणे ॥ (४)
हे इंद्र! आप मौसम के अनुसार बढ़ोतरी पाते हैं. आप यज्ञ जैसे कामों से बढ़ोतरी पाते हैं. आप बुद्धिमान और ज्ञानी हैं. हम आप की उपासना करते हैं. (४)
O Indra! You get an increase according to the season. You get increase from works like yajna. You are intelligent and knowledgeable. We worship you. (4)
सामवेद (अध्याय 26)
त्वामिच्छवसस्पते यन्ति गिरो न संयतः ॥ (५)
हे इंद्र! आप महान व बलवान हैं. सदाचारी पुरुष के पास जैसे कल्याण हेतु जाया जाता है, वैसे ही हमारी वाणीमय प्रार्थनाएं आप के पास पहुंचती हैं. (५)
O Indra! You are great and strong. Just as we go to a virtuous man for welfare, our speechless prayers reach you. (5)
सामवेद (अध्याय 26)
वि स्रुतयो यथा पथा इन्द्र त्वद्यन्तु रातयः ॥ (६)
हे इंद्र! राजपथ से जैसे दूसरे पथ मिलते हैं, वैसे ही आप से भांतिभांति के दान अनुदान प्राप्त होते हैं. (६)
O Indra! Just as other paths meet from Rajpath, you receive donation grants of various types. (6)
सामवेद (अध्याय 26)
आ त्वा रथं यथोतये सुम्नाय वर्त्तयामसि । तुविकूर्मिमृतीषहमिन्द्रं शविष्ठ सत्पतिम् ॥ (७)
हे इंद्र! आप अच्छे मन वाले हैं. आप सत्पति हैं. आप श्रेष्ठ मार्गगामी हैं. हम सुख और कल्याण के लिए उसी प्रकार आप की उपासना करते हैं, जिस प्रकार रथ की परिक्रमा की जाती है. (७)
O Indra! You are good-minded. You are the satpati. You are the best guide. We worship you for happiness and welfare in the same way as the chariot is circumambulated. (7)
सामवेद (अध्याय 26)
तुविशुष्म तुविक्रतो शचीवो विश्वया मते । आ पप्राथ महित्वना ॥ (८)
हे इंद्र! आप महिमाशाली व शक्तिशाली हैं. आप श्रेष्ठ कर्म करने वाले और समस्त विश्व में व्याप्त हैं. (८)
O Indra! You are glorious and powerful. You are the one who does the best deeds and pervades the whole world. (8)