हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 3.1.2

अध्याय 3 → खंड 1 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 3)

सामवेद: | खंड: 1
त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कार्वः । त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥ (२)
हे इंद्र! स्तुति करने वाले यजमान हवि दान के लिए आप को आमंत्रित करते हैं. आप सत्य (या सज्जनो) के पालनहार हैं. हम तथा दूसरे सभी शत्रु या घोड़ों से संबंधित युद्धों में मदद के लिए आप को ही पुकारते हैं. (२)
O Indra! The praising host invites you to donate. You are the sustainer of truth (or gentlemen). We and all others call on you to help in enemies or horse-related wars. (2)