हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 3.10.5

अध्याय 3 → खंड 10 → मंत्र 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 3)

सामवेद: | खंड: 10
मेडिं न त्वा वज्रिणं भृष्टिमन्तं पुरुधस्मानं वृषभँ स्थिरप्स्नुम् । करोष्यर्यस्तरुषीर्दुवस्युरिन्द्र द्युक्षं वृत्रहणं गृणीषे ॥ (५)
हे यजमानो! अच्छे कमो के कारण सभी जगह इंद्र की सराहना होती है. वे वृत्रासुर व शत्रुविनाशक हैं. उन की स्वर्गलोक में प्रतिष्ठा है. वे बलवान हैं. वे युद्धों में स्थिर रहते हैं. वे वज्रधारी और दुष्टनाशक हैं. वे विजयदाता हैं. हम भी उन की महिमा की सराहना करते हैं. (५)
O hosts! Due to good deeds, Indra is appreciated everywhere. They are vritrasura and enemies. They have a reputation in heaven. They are strong. They remain stable in wars. They are thunderbolts and evil destroyers. They are the winners. We also appreciate the glory of them. (5)