सामवेद (अध्याय 3)
इममिन्द्र सुतं पिब ज्येष्ठममर्त्यं मदम् । शुक्रस्य त्वाभ्यक्षरन्धारा ऋतस्य सादने ॥ (३)
हे इंद्र! आप अमर व प्रसन्नतादायी हैं. सदन में परिष्कृत सोमरस आप की ओर बढ़ रहा है. आप उसे स्वीकारने की कृपा कीजिए. (३)
O Indra! You are immortal and happy. The sophisticated Somers in the House is heading towards you. Please accept it. (3)