हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 3.2.5

अध्याय 3 → खंड 2 → मंत्र 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 3)

सामवेद: | खंड: 2
त्वमङ्ग प्र शँसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम् । न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र ब्रवीमि ते वचः ॥ (५)
हे इंद्र! आप बलवान व प्रकाश वाले हैं. आप अपने पूजकों की प्रशंसा करते हैं. आप धनवान हैं. आप के अलावा कोई सुख देने वाला नहीं है. इसी कारण मैं आप की स्तुति करता हूं. (५)
O Indra! You are strong and light. You praise your worshippers. You are rich. There is no one to give happiness except you. That's why I praise you. (5)