हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 3.8.6

अध्याय 3 → खंड 8 → मंत्र 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 3)

सामवेद: | खंड: 8
अध्वर्यो द्रावया त्वँ सोममिन्द्रः पिपासति । उपो नूनं युयुजे वृष्णा हरी आ च जगाम वृत्रहा ॥ (६)
हे पुरोहित! आप सोमरस को जल्दी तैयार कीजिए. इंद्र जल्दी सोमरस पीना चाहते हैं. उन्होंने अपने घोड़े रथ में जोत लिए हैं. वृत्रासुर का नाश करने वाले इंद्र पहुंच भी गए. (६)
O priest! You prepare somers early. Indra wants to drink somers early. He has ploughed his horses in the chariot. Indra, who destroyed Vritrasura, also reached. (6)