हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 4.12.2

अध्याय 4 → खंड 12 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 4)

सामवेद: | खंड: 12
अयँ सहस्रमानवो दृशः कवीनां मतिर्ज्योतिर्विधर्म । ब्रध्नः समीचीरुषसः समैरयदरेपसः सोचेतसः स्वसरे मन्युमन्तश्चिता गोः ॥ (२)
सूर्य हजारों मनुष्यों का हित करने वाले कवि, देखने योग्य, प्रकाशमान व अंधकारभेदक हैं. वे उषा को भेजते हैं. उन के प्रकाश के सामने चंद्रमा और दूसरे नक्षत्रों की चमक फीकी लगती है. (२)
The sun is a poet who benefits thousands of human beings, is observable, luminous and dark-eyed. They send Usha. In front of their light, the brightness of the moon and other constellations seems to fade. (2)