हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 4.12.3

अध्याय 4 → खंड 12 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 4)

सामवेद: | खंड: 12
एन्द्र याह्युप नः परावतो नायमच्छा विदथानीव सत्पतिरस्ता राजेव सत्पतिः । हवामहे त्वा प्रयस्वन्तः सुतेष्वा पुत्रासो न पितरं वाजसातये मँहिष्ठं वाजसातये ॥ (३)
हे इंद्र! आप सज्जनों के पालनहार हैं. जैसे अग्नि यज्ञशाला में पधारते हैं, वैसे ही आप हमारे पास पधारते हैं. आप सत्पति हैं. जैसे दुश्मनों को हरा कर राजा घर आता है, वैसे ही आप अंतरिक्षलोक से हमारे पास पधारते हैं. हम युद्ध में मदद के लिए उसी तरह आप का आह्वान करते हैं, जैसे अन्नादि के लिए पुत्र पिता को बुलाते हैं. हम अन्न आदि भोग के साथ अन्नादि की प्राप्ति के लिए आप का आह्वान करते हैं. (३)
O Indra! You are the sustainer of gentlemen. Just as agni comes to the yagyashala, so you come to us. You are the satpati. Just as the king comes home after defeating the enemies, so you come to us from space. We call upon you to help in war in the same way as sons call fathers for annadi. We call upon you to attain Annadi with food etc. (3)