हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 4.3.2

अध्याय 4 → खंड 3 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 4)

सामवेद: | खंड: 3
श्रत्ते दधामि प्रथमाय मन्यवेऽहन्यद्दस्युं नर्यं विवेरपः । उभे यत्वा रोदसी धावतामनु भ्यसात्ते शुष्मात्पृथिवी चिदद्रिवः ॥ (२)
हे इंद्र! आप दुष्टों (दुश्मनों) का नाश करने वाले हैं. आप प्राणियों के हित के लिए जल बरसाते हैं. स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक आप की इच्छा से क्रियाशील होते हैं. हम इंद्र के उस क्रोध की प्रशंसा करते हैं, जो अन्याय को दूर करता है. हम यजमान आप पर बहुत श्रद्धा रखते हैं. (२)
O Indra! You are the destroyer of the wicked (enemies). You rain water for the benefit of creatures. Heaven and earth are active by your will. We admire Indra's anger that removes injustice. We hosts have great faith in you. (2)