सामवेद (अध्याय 5)
एष स्य ते मधुमाँ इन्द्र सोमो वृषा वृष्णः परि पवित्रे अक्षाः । सहस्रदाः शतदा भूरिदावा शश्वत्तमं बर्हिरा वाज्यस्थात् ॥ (९)
हे इंद्र! आप का प्रिय सोमरस इच्छा पूरी करता है. आप के लिए यह मधुर शक्तिदायी सोमरस छन रहा है. यह सैकड़ों, हजारों प्रकार का धन देने वाला है. सोम प्राचीन काल से ही यज्ञ में जा कर विराजते हैं. (९)
O Indra! Your beloved Somerus fulfills the desire. This sweet powerful Somersa is filtering for you. It is going to give hundreds, thousands of types of money. Som has been sitting in the yagna since ancient times. (9)