हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद 12.33

अध्याय 12 → मंत्र 33 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

यजुर्वेद:
अक्र॑न्दद॒ग्नि स्त॒नय॑न्निव॒ द्यौः क्षामा॒ रेरि॑हद् वी॒रुधः॑ सम॒ञ्जन्। सद्यो॒ ज॑ज्ञा॒नो वि हीमि॒द्धोऽअख्य॒दा रोद॑सी भा॒नुना॑ भात्य॒न्तः ॥ (३३)
अग्नि के गरजने की आवाज मेघ के गरजने की आवाज के समान है. पृथ्वी को मेघ के समान ही भिगाते हैं. समिधावान अग्नि स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक को प्रकाशित करते हैं. वे स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक के मध्य चमकते हैं. (३३)
The sound of the thunder of agni is similar to the sound of thunder of the cloud. They soak the earth like a cloud. Samidhavan Agni illuminates heaven and earth. They shine between heaven and earth. (33)