हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

अध्याय 20 के सभी मंत्र

यजुर्वेद अध्याय 20 के सभी मंत्र हिंदी अर्थ के साथ

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
क्ष॒त्रस्य॒ योनि॑रसि क्ष॒त्रस्य॒ नाभि॑रसि। मा त्वा॑ हिꣳसी॒न्मा मा॑ हिꣳसीः ॥ (१)
हे वेदिके! आप क्षत्रिय का उत्पत्ति स्थान हैं. आप क्षत्रिय की नाभि हैं. यह आसन आप को कष्ट न दे. आप भी हमें कष्ट मत दीजिए. (१)
O Vedika! You are the place of origin of Kshatriya. You are the navel of a Kshatriya. Do not give this asana to you. You also don't trouble us. (1)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
निष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्यास्वा। साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतुः॑। मृ॒त्योः पा॑हि वि॒द्योत् पा॑हि ॥ (२)
आप ब्रतधारी, वरुण, पालक और साम्राज्य के लिए सैकड़ों यज्ञ करने वाले हैं. आप विद्युत्‌ के उत्पात से रक्षा कीजिए. आप मृत्यु से बचाइए. (२)
You are going to perform hundreds of yagyas for Bratdhari, Varuna, Palak and Sambharaj. You protect against electrical nuisance. You save from death. (2)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वेऽश्विनो॑र्बा॒हुभ्यां॑ पू॒ष्णो हस्ता॑भ्याम्। अ॒श्विनो॒र्भैष॑ज्येन॒ तेज॑से ब्रह्मवर्च॒साया॒भि षि॑ञ्चामि॒ सर॑स्वत्यै॒ भैष॑ज्येन वी॒र्याया॒न्नाद्याया॒भि षि॑ञ्चा॒मीन्द्र॑स्येन्द्रि॒येण॒ बला॑य श्रि॒यै यश॑से॒ऽभि षि॑ञ्चामि ॥ (३)
हम देवता सविता देव व अश्‍्विनीकुमारों की बाहु हेतु आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम पूषा देव के हाथों के लिए आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम अश्विनीकुमारों की चिकित्सा के तेज से आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम ब्रहज्ञान के वर्चस्व हेतु आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम सरस्वती देवी के ओषधि उपचार से आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम अन्न व पराक्रम प्राप्ति हेतु आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम इंद्र देव के इंद्रिय बल व यश हेतु आप का अभिषेक करते हैं. (३)
We revere you for the arm of the gods Savita Dev and Ashwini Kumars. We associate you for the hands of Pusha Dev. We distinguished you with the speed of medicine of Ashwinikumars. We associate you with the supremacy of Brahmagyan. We associate you with the medicinal treatment of Saraswati Devi. We honor you for getting food and might. We anoint you for the strength of Indra Dev's sense. (3)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
को॑ऽसि कत॒मोऽसि॒ कस्मै॑ त्वा॒ काय॑ त्वा। सुश्लो॑क॒ सुम॑ङ्गल॒ सत्य॑राजन् ॥ (४)
आप कौन हैं ? आप कौन से प्रजापति हैं? आप किस के लिए हैं ? किस के लिए आप को प्रतिष्ठित किया जाता है? आप की अच्छे श्लोक से स्तुति की जाती है. आप अच्छे कल्याणकारी, सत्यवान व राजा हैं. (४)
Who are you? Which Prajapati are you? What are you for? What are you reputed for? You are praised with a good verse. You are a good benefactor, truthful and king. (4)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
शिरो॑ मे॒ श्रीर्यशो॒ मुखं॒ त्विषिः॒ केशा॑श्च॒ श्मश्रू॑णि। राजा॑ मे प्रा॒णोऽअ॒मृत॑ꣳ स॒म्राट् चक्षु॑र्वि॒राट् श्रोत्र॑म् ॥ (५)
हमारा सिर, मुख, केश व मूंें शोभायुक्त हों. हमारे प्राण राजा,अमृत व सम्राट हों. हमारे नेत्र सब कुछ देखने वाले हों. हमारे कान विराट्‌ हों. (५)
May our head, mouth, hair and mouth be adorned. May our souls be kings, nectar and emperors. Let our eyes see everything. Let our ears be huge. (5)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
जि॒ह्वा मे॑ भ॒द्रं वाङ् महो॒ मनो॑ म॒न्युः स्व॒राड् भामः॑। मोदाः॑ प्रमो॒दा अ॒ङ्गुली॒रङ्गा॑नि मि॒त्रं मे॒ सहः॑ ॥ (६)
हमारी जीभ कल्याणकारी वचन बोले. बाणी महिमा युक्त हो. मन अन्याय पर क्रोध करे. हमारी अंगुलियां आमोदप्रमोद दें. हमारे मित्र हमारे साथ रहें. (६)
Our tongues speak welfare promises. The queen is full of glory. The mind should be angry at injustice. Give our fingers a smile. Our friends stay with us. (6)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
बा॒हू मे॒ बल॑मिन्द्रि॒यꣳ हस्तौ॑ मे॒ कर्म॑ वी॒र्यम्। आ॒त्मा क्ष॒त्रमुरो॒ मम॑ ॥ (७)
हमारे बाहु और इंद्रियां बल युक्त हों. हमारे दोनों हाथ पुरुषार्थी हों. हमारी आत्मा और हृदय क्षत्रिय धर्म के अनुकूल हों. (७)
Let our arms and senses be strong. Both our hands should be powerful. Let our mind and heart be aligned with Kshatriya(warrior) dharma. (7)

यजुर्वेद (अध्याय 20)

यजुर्वेद:
पृ॒ष्ठीर्मे॑ रा॒ष्ट्रमु॒दर॒मꣳसौ॑ ग्री॒वाश्च॒ श्रोणी॑। ऊ॒रूऽअ॑र॒त्नी जानु॑नी॒ विशो॒ मेऽङ्गा॑नि स॒र्वतः॑ ॥ (८)
हमारी पीठ राष्ट्र जैसी हो. पेट, दोनों कंधे, गरदन, दोनों कूल्हे, दोनों जंघाएं, कमर, घुटने आदि हमारे अंग सब ओर से प्रजा का पोषण करें. (८)
Let our back be like a nation. Stomach, both shoulders, neck, both hips, both thighs, waist, knees etc. (8)
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