हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद 20.38

अध्याय 20 → मंत्र 38 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

यजुर्वेद:
ई॒डि॒तो दे॒वैर्हरि॑वाँ२ऽअभि॒ष्टिरा॒जुह्वा॑नो ह॒विषा॒ शर्द्ध॑मानः। पु॒र॒न्द॒रो गो॑त्र॒भिद् ्वज्र॑बाहु॒राया॑तु य॒ज्ञमुप॑ नो जुषा॒णः ॥ (३८)
इंद्र देवों से उपासित, गतिवान, अभीष्ट, यज्ञ में पूजनीय, हवि हेतु आमंत्रित, शत्रुनगरी भेदक, गोनाशक के नाशक व वज्रबाहु है. इंद्र देव हमारे यज्ञ का सेवन करने की कृपा करें. (३८)
Indra is worshiped by gods, dynamic, desired, revered in yajna, invited to Havi, enemy city piedak, destroyer of gonashak and vajrabahu. May Indra Dev be pleased to consume our yajna. (38)