यजुर्वेद (अध्याय 27)
य॒ज्ञाय॑ज्ञा वोऽअ॒ग्नये॑ गि॒रागि॑रा च॒ दक्ष॑से।प्रप्र॑ व॒यम॒मृतं॑ जा॒तवे॑दसं प्रि॒यं मि॒त्रं न श॑ꣳसिषम् ॥ (४२)
हर यज्ञ में अग्नि की स्तोत्रों से उपासना की जाती है. आप अमर, सर्वज्ञ, हमारे प्रिय व मित्र हैं. आप प्रशंसित हैं. (४२)
In every yajna, agni is worshiped with stotras. You are immortal, omniscient, dear and friend of ours. You are acclaimed. (42)