यजुर्वेद (अध्याय 3)
उप॑ त्वाग्ने ह॒विष्म॑तीर्घृ॒ताची॑र्यन्तु हर्यत। जु॒षस्व॑ स॒मिधो॒ मम॑ ॥ (४)
हे अग्नि! हवि एवं घृत वाली आहुतियां आप तक पहुंचें, आप का मन हरं. आप हमारे द्वारा भेंट की गई समिधाओं को स्वीकार करने की कृपा करें. (४)
O agni! Let the sacrifices of havi and ghee reach you, lose your mind. Please accept the memories presented by us. (4)