हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद 32.4

अध्याय 32 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

यजुर्वेद:
ए॒षो ह॑ दे॒वः प्र॒दिशोऽ नु॒ सर्वाः॒ पूर्वो॑ ह जा॒तः सऽ उ॒ गर्भे॑ऽ अ॒न्तः। सऽ ए॒व जा॒तः स ज॑नि॒ष्यमा॑णः प्र॒त्यङ् जना॑स्तिष्ठति स॒र्वतो॑मुखः ॥ (४)
वह परम पुरुष सभी प्रदेशों में व्याप्त है. वह पूर्वं और अंत में भी व्याप्त है. वही उत्पन्न हुओं में विद्यमान है. बही उत्पन्न हो रहे प्राणियों में भी विद्यमान है. वही जन्म लेने वालों में भी व्याप्त होगा. वह सभी में सर्वविधि व्याप्त है. (४)
That Supreme Being pervades all territories. It also pervades the east and the end. It exists in those who have originated. The book is also present in the beings that are being born. The same will prevail among those born. He is omnipresent in all. (4)