यजुर्वेद (अध्याय 4)
पुन॒र्मनः॒ पुन॒रायु॑र्म॒ऽआग॒न् पुनः॑ प्रा॒णः पुन॑रा॒त्मा मऽआग॒न् पुन॒श्चक्षुः॒ पुनः॒ श्रोत्रं॑ म॒ऽआग॑न्। वै॒श्वा॒न॒रोऽद॑ब्धस्तनू॒पाऽअ॒ग्निर्नः॑ पातु दुरि॒ताद॑व॒द्यात् ॥ (१५)
मन फिर से आ गया. आयु पुनः आ गई. पुनः प्राण प्राप्त हो गए. पुनः आत्मा प्राप्त हो गई. पुनः नेत्र मिल गए. पुनः कान मिल गए. हे अग्नि! आप सब का कल्याण चाहते हैं. आप शरीर के रक्षक हैं. आप का दमन नहीं किया जा सकता. हे अग्नि! आप हमें पापों व बुरे कामों से बचाएं. (१५)
The mind came again. Age came back. He was killed again. The soul was regained. Got my eyes again. Got ears again. O agni! You want everyone's welfare. You are the protector of the body. You cannot be suppressed. O agni! May you save us from sins and evil deeds. (15)