हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद 4.30

अध्याय 4 → मंत्र 30 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

यजुर्वेद:
अदि॑त्या॒स्त्वग॒स्यदि॑त्यै॒ सद॒ऽआसी॑द। अस्त॑भ्ना॒द् द्यां वृ॑ष॒भोऽअ॒न्तरि॑क्ष॒ममि॑मीत वरि॒माण॑म्पृथि॒व्याः। आसी॑द॒द्विश्वा॒ भुव॑नानि स॒म्राड् विश्वेत्तानि॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ ॥ (३०)
हे आसन! आप पृथ्वी की त्वचा जैसे हैं. आप यज्ञवेदी पर विराजने की कृपा कीजिए. बलवान वरुण स्वर्गलोक को माप लेते हैं. अंतरिक्षलोक को माप लेते हैं. पृथ्वीलोक को माप लेते हैं. वे सभी लोकों में व्याप्त हैं. उन के ब्रत भलीभांति शोभते हैं. (३०)
O seat! You are like the skin of the earth. Please sit on the yagyavedi. The strong Varuna measures heaven. Measure space space. Measure the earth.' They are prevalent in all worlds. Their brats are well aware. (30)