हरि ॐ

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद 5.18

अध्याय 5 → मंत्र 18 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

यजुर्वेद:
विष्णो॒र्नु कं॑ वी॒र्याणि॒ प्रवो॑चं॒ यः पार्थि॑वानि विम॒मे रजा॑सि। योऽअस्क॑भाय॒दुत्त॑रꣳ स॒धस्थं॑ विचक्रमा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यो विष्ण॑वे त्वा ॥ (१८)
हम यजमान विष्णु के अनुकरणीय कार्यों पराक्रमपूर्ण कार्यो का वर्णन करते हैं. उन की चरणरज में पृथ्वी आदि लोक वास करते हैं. वे हमें भयमुक्त करते हैं. वे लोकों को साधने वाले व सर्वव्यापक हैं. हम उन की प्रसन्नता के लिए हैं. काष्ठ देव आप की स्थापना करते हैं. (१८)
We describe the exemplary deeds of host Vishnu. In their feet, the earth etc. live. They free us from fear. They are omnipresent and omnipresent. We are for their happiness. Wood God establishes you. (18)