हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.106.3

मंडल 1 → सूक्त 106 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 106
अव॑न्तु नः पि॒तरः॑ सुप्रवाच॒ना उ॒त दे॒वी दे॒वपु॑त्रे ऋता॒वृधा॑ । रथं॒ न दु॒र्गाद्व॑सवः सुदानवो॒ विश्व॑स्मान्नो॒ अंह॑सो॒ निष्पि॑पर्तन ॥ (३)
सुखसाध्य स्तुति वाले पितर एवं देवों के पिता-माता के समान यज्ञवर्धक द्यावापृथ्वी हमारी रक्षा करें. निवासस्थान देने वाले एवं शोभनदानयुक्त देव पापों से बचाकर हमारा उसी प्रकार पालन करें, जैसे सारथि रथ को ऊंचेनीचे मार्ग र्ग से बचाकर ले जाता है. (३)
May the sacrificial davapathis, like the fathers of happy praise and the fathers and mothers of the gods, protect us. May the god who gives the abode and the adornments follow us in the same way as the charioteer takes the chariot away from the high path below. (3)