ऋग्वेद (मंडल 1)
यच्चि॒त्रमप्न॑ उ॒षसो॒ वह॑न्तीजा॒नाय॑ शशमा॒नाय॑ भ॒द्रम् । तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑तिः॒ सिन्धुः॑ पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥ (२०)
उषाएं जो विचित्र एवं प्राप्त करने योग्य धन लाती हैं, वह हवि देने वाले एवं स्तुति करने वाले पुरुष के लिए कल्याणकारी है. मित्र, वरुण, सिंधु धरती एवं आकाश इस प्रार्थना की पूजा करें. (२०)
The strange and achievable wealth that usha brings is beneficial to the man who gives and praises him. Friends, Varuna, Sindhu Earth and Sky worship this prayer. (20)