ऋग्वेद (मंडल 1)
तद्वां॑ नरा स॒नये॒ दंस॑ उ॒ग्रमा॒विष्कृ॑णोमि तन्य॒तुर्न वृ॒ष्टिम् । द॒ध्यङ्ह॒ यन्मध्वा॑थर्व॒णो वा॒मश्व॑स्य शी॒र्ष्णा प्र यदी॑मु॒वाच॑ ॥ (१२)
हे नेताओ! अथर्वा के पुत्र दध्यंग ऋषि ने तुम्हारे सामर्थ्य से अश्व की ग्रीवा धारण करके मधुर वचन बोले थे. यह तुम्हारे उग्र कर्म को उसी प्रकार प्रकट करता है, जिस प्रकार बादल का गर्जन बादल के भीतर जल को बताता है. (१२)
Hey leaders! The sage Dadhyanga, the son of Atharva, had spoken sweet words by holding the neck of the horse by your power. It reveals your furious deeds in the same way that the roar of the cloud tells the water within the cloud. (12)