हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.120.12

मंडल 1 → सूक्त 120 → श्लोक 12 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 120
अध॒ स्वप्न॑स्य॒ निर्वि॒देऽभु॑ञ्जतश्च रे॒वतः॑ । उ॒भा ता बस्रि॑ नश्यतः ॥ (१२)
मैं प्रातःकाल के स्वमन एवं दूसरों को रक्षा न करने वाले धनी से घृणा करता हूं. ये दोनों शीघ्र नष्ट हो जाते हैं. (१२)
I hate the morning self and the rich who do not protect others. Both of them are quickly destroyed. (12)