ऋग्वेद (मंडल 1)
अध॒ स्वप्न॑स्य॒ निर्वि॒देऽभु॑ञ्जतश्च रे॒वतः॑ । उ॒भा ता बस्रि॑ नश्यतः ॥ (१२)
मैं प्रातःकाल के स्वमन एवं दूसरों को रक्षा न करने वाले धनी से घृणा करता हूं. ये दोनों शीघ्र नष्ट हो जाते हैं. (१२)
I hate the morning self and the rich who do not protect others. Both of them are quickly destroyed. (12)