हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.120.2

मंडल 1 → सूक्त 120 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 120
वि॒द्वांसा॒विद्दुरः॑ पृच्छे॒दवि॑द्वानि॒त्थाप॑रो अचे॒ताः । नू चि॒न्नु मर्ते॒ अक्रौ॑ ॥ (२)
अज्ञ स्तोता इसी प्रकार तुम सर्वज्ञों की सेवा रूपी मार्ग को जानना चाहता है. उनके अतिरिक्त सब ज्ञानहीन हैं. शत्रु द्वारा आक्रमणरहित वे शीघ्र ही स्तोता पर अनुग्रह करते हैं. (२)
The ignorant stota similarly wants you to know the way of service to the omniscient. All but them are ignorant. Uninvaded by the enemy they soon do grace the hymn. (2)