हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.120.4

मंडल 1 → सूक्त 120 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 120
वि पृ॑च्छामि पा॒क्या॒३॒॑ न दे॒वान्वष॑ट्कृतस्याद्भु॒तस्य॑ दस्रा । पा॒तं च॒ सह्य॑सो यु॒वं च॒ रभ्य॑सो नः ॥ (४)
हे दर्शनीयो! मैं तुम्हीं से पूछना चाहता हूं, अन्य पक्व-बुद्धि देवों से नहीं. तुम वषट्कार के साथ अनने में डाले गए सोमरस को पिओ एवं प्रौढ़ बनाओ. (४)
O you see! I want to ask you, not to other god-wise gods. You drink the somras that you put in the anana with the year-to-day and make it mature. (4)