हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.125.3

मंडल 1 → सूक्त 125 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 125
आय॑म॒द्य सु॒कृतं॑ प्रा॒तरि॒च्छन्नि॒ष्टेः पु॒त्रं वसु॑मता॒ रथे॑न । अं॒शोः सु॒तं पा॑यय मत्स॒रस्य॑ क्ष॒यद्वी॑रं वर्धय सू॒नृता॑भिः ॥ (३)
मैं शोभनकर्मा एवं यज्ञरक्षक को देखने के लिए धनयुक्त रथ में बैठकर आज आया हूं. प्रकाशयुक्त एवं मादकता प्रदान करने वाले सोमरस को पिओ तथा सुंदर पुत्र, भृत्य आदि की कामना करो. (३)
I have come today to sit in a rich chariot to see Shobhankarma and the yajnarakshak. Drink the light and intoxicating Someras and wish for a beautiful son, bhritya, etc. (3)