हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.129.10

मंडल 1 → सूक्त 129 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 129
त्वं न॑ इन्द्र रा॒या तरू॑षसो॒ग्रं चि॑त्त्वा महि॒मा स॑क्ष॒दव॑से म॒हे मि॒त्रं नाव॑से । ओजि॑ष्ठ॒ त्रात॒रवि॑ता॒ रथं॒ कं चि॑दमर्त्य । अ॒न्यम॒स्मद्रि॑रिषेः॒ कं चि॑दद्रिवो॒ रिरि॑क्षन्तं चिदद्रिवः ॥ (१०)
हे इंद्र! हमारी आपत्तियों को समाप्त करने वाले धन से हमारा उद्धार करो. जिस प्रकार सर्वहितकारी मित्र की महिमा है, उसी प्रकार उग्र बल संपन्न इंद्र हमारी रक्षा के लिए महिमायुक्त हैं. हे शक्तिशाली, रक्षक, पालक, मरणरहित एवं शत्रुनाशक इंद्र! तुम चाहे जिस रथ पर सवार होकर आओ एवं हमारे अतिरिक्त सबको बाधा पहुंचाओ. हे शत्रुनाशक! निंदितकर्म वाले शत्रु के बाधक बनो. (१०)
O Indra! Save us from the money that eliminates our objections. Just as the all-beneficial friend is glorified, so is indra, who is powered by a fierce force, is glorified to protect us. O mighty, protector, guardian, deathless and hostile Indra! Whatever chariot you like, come on and hinder everyone except us. O enemy! Be an obstacle to the enemy of blasphemy. (10)