ऋग्वेद (मंडल 1)
नरा॒शंस॑मि॒ह प्रि॒यम॒स्मिन्य॒ज्ञ उप॑ ह्वये । मधु॑जिह्वं हवि॒ष्कृत॑म् ॥ (३)
मैं इस यज्ञ में प्रिय, मधुजिह्व, हव्य-संपादक एवं मनुष्यों द्वारा प्रशंसित अग्नि को बुलाता हूं. (३)
I call in this yajna the beloved, madhujihava, the human-editor and the fire admired by human beings. (3)