ऋग्वेद (मंडल 1)
अवि॑न्दद्दि॒वो निहि॑तं॒ गुहा॑ नि॒धिं वेर्न गर्भं॒ परि॑वीत॒मश्म॑न्यन॒न्ते अ॒न्तरश्म॑नि । व्र॒जं व॒ज्री गवा॑मिव॒ सिषा॑स॒न्नङ्गि॑रस्तमः । अपा॑वृणो॒दिष॒ इन्द्रः॒ परी॑वृता॒ द्वार॒ इषः॒ परी॑वृताः ॥ (३)
जिस प्रकार कबूतरी दुर्गम स्थान में अपने बच्चों को रखकर उस अपरिचित स्थान को खोज लेती है, वैसे ही इंद्र ने अत्यंत गुप्त स्थान में रखा हुआ तथा पत्थरों के ढेर से घिरा हुआ सोम स्वर्ग में प्राप्त किया. पणियों ने गायों को गोशाला में बंद कर दिया था. अंगिराओं में श्रेष्ठ इंद्र ने जिस प्रकार उस गोशाला को खोज लिया, उसी प्रकार सोमरस को भी ढूंढ. अन्न के कारण जल को मेघ ने रोक लिया था. इंद्र ने मेघ का भेदन करके जल बरसाया और धरती पर अन्न का विस्तार किया. (३)
Just as the dove finds the unfamiliar place by placing his children in a difficult place, Indra, kept in a very secret place and surrounded by a pile of stones, attained The Mon in heaven. The pangs had locked the cows in the goshala. Just as Indra, the superior of the Angiras, discovered the goshala, so did Someras. The water was stopped by the cloud because of the food. Indra pierced the cloud and poured out water and expanded the grain on the earth. (3)