ऋग्वेद (मंडल 1)
शची॑भिर्नः शचीवसू॒ दिवा॒ नक्तं॑ दशस्यतम् । मा वां॑ रा॒तिरुप॑ दस॒त्कदा॑ च॒नास्मद्रा॒तिः कदा॑ च॒न ॥ (५)
हे कर्मरूप धन के स्वामियो! हमारे यज्ञादि कर्म द्वारा हमें रात-दिन मनचाही वस्तुएं दो. तुम्हारा एवं हमारा दान कभी भी समाप्त न हो. (५)
O masters of karmaroop money! Give us the things we want day and night through our sacrificial deeds. Your donation and yours will never end. (5)