ऋग्वेद (मंडल 1)
उ॒त स्या वां॒ रुश॑तो॒ वप्स॑सो॒ गीस्त्रि॑ब॒र्हिषि॒ सद॑सि पिन्वते॒ नॄन् । वृषा॑ वां मे॒घो वृ॑षणा पीपाय॒ गोर्न सेके॒ मनु॑षो दश॒स्यन् ॥ (८)
हे अश्चिनीकुमारो! तुम तेजस्वी हो. तुम्हारी स्तुति तीन कुशों से युक्त यज्ञगृह में यजमान को प्रसन्न करे. हे कामवर्षको! तुमसे संबंधित बादल वर्षा करता हुआ मनुष्यों को धन देकर प्रसन्न करे. (८)
O aschinikumaro! You're stunning. May your praise please the host in the yajnaghara with three kushas. O work years! May the clouds related to you please the people by giving them money while raining. (8)