हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.185.2

मंडल 1 → सूक्त 185 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 185
भूरिं॒ द्वे अच॑रन्ती॒ चर॑न्तं प॒द्वन्तं॒ गर्भ॑म॒पदी॑ दधाते । नित्यं॒ न सू॒नुं पि॒त्रोरु॒पस्थे॒ द्यावा॒ रक्ष॑तं पृथिवी नो॒ अभ्वा॑त् ॥ (२)
अचल एवं चरणसहित धरती और आकाश चलने वाले तथा चरणयुक्त प्राणियों को गर्भ के समान धारण करते हैं. जैसे माता-पिता की गोद में बालक रहता है, उसी प्रकार ये सबको रखते हैं. हे धरती और आकाश! हमें महापाप से बचाओ. (२)
The earth and the sky, with the motion and the steps, hold the moving and phased beings as a womb. Just as a child lives in the lap of the parents, so they keep it all. O earth and sky! Save us from the great sin. (2)