ऋग्वेद (मंडल 1)
अ॒यमु॑ ते॒ सम॑तसि क॒पोत॑ इव गर्भ॒धिम् । वच॒स्तच्चि॑न्न ओहसे ॥ (४)
हे इंद्र! जिस प्रकार कबूतर गर्भ धारण करने की इच्छुक कबूतरी को प्राप्त करता है, उसी प्रकार तुम अपने इस सोमरस को ग्रहण करो. इसी सोमरस के कारण हमारी प्रार्थनाएं भी स्वीकार करो. (४)
O Indra! Just as the dove receives the dove willing to conceive, so you receive this somras of yours. Also accept our prayers because of this somras. (4)