ऋग्वेद (मंडल 1)
त्वं नो॑ अग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व॑श्च वन्द्य । त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेषं॒ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥ (१२)
हे वंदनीय अग्नि! तुम अपनी रक्षणशक्ति द्वारा हम धनवानों एवं हमारे पुत्रों के शरीर की रक्षा करो. हमारे पौत्र तुम्हारे यज्ञ में सदा लगे रहते हैं. तुम उनकी गायों की रक्षा करो. (१२)
O glorious agni! You protect the bodies of us rich and our sons by your protective power. Our grandchildren are always engaged in your yajna. You protect their cows. (12)