हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिश्चि॑न्नो अ॒द्या भ॑वतं नवेदसा वि॒भुर्वां॒ याम॑ उ॒त रा॒तिर॑श्विना । यु॒वोर्हि य॒न्त्रं हि॒म्येव॒ वास॑सोऽभ्यायं॒सेन्या॑ भवतं मनी॒षिभिः॑ ॥ (१)
हे बुद्धिमान्‌ अश्विनीकुमारो! तुम हमारे लिए आज तीन बार आओ. तुम्हारे रथ और दान व्यापक हैं. जिस प्रकार रशमियों वाला सूर्य शीतल रात्रि से संबंधित है, उसी प्रकार तुम दोनों का भी नियमित संबंध है. तुम कृपा करके विद्वानों के वश में हो जाओ. (१)
O wise Ashwinikumaro! You come to us three times today. Your chariots and donations are extensive. Just as the sun with rashes is related to the cold night, so do you both have a regular relationship. Please be subdued by the scholars. (1)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रयः॑ प॒वयो॑ मधु॒वाह॑ने॒ रथे॒ सोम॑स्य वे॒नामनु॒ विश्व॒ इद्वि॑दुः । त्रयः॑ स्क॒म्भासः॑ स्कभि॒तास॑ आ॒रभे॒ त्रिर्नक्तं॑ या॒थस्त्रिर्व॑श्विना॒ दिवा॑ ॥ (२)
समस्त देवता चंद्रमा और उसकी सुंदरी पत्नी वेना के विवाह में जा रहे थे, तब उन्हें पता लगा कि मधुर भोज्य-पदार्थ को ढोने वाले रथ में तीन पहिए हैं. उस रथ के ऊपर सहारा लेने के लिए खंभे हैं. हे अश्विनीकुमारो! इस प्रकार के रथ द्वारा तुम दिन में तीन बार आओ और रात में भी तीन बार आओ. (२)
All the gods were going to the wedding of The Moon and his beautiful wife Vena, when they found out that there were three wheels in the chariot carrying sweet food. There are pillars to resort to on top of that chariot. O Ashwinikumaro! By this type of chariot you come three times a day and also come three times at night. (2)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
स॒मा॒ने अह॒न्त्रिर॑वद्यगोहना॒ त्रिर॒द्य य॒ज्ञं मधु॑ना मिमिक्षतम् । त्रिर्वाज॑वती॒रिषो॑ अश्विना यु॒वं दो॒षा अ॒स्मभ्य॑मु॒षस॑श्च पिन्वतम् ॥ (३)
हे अश्चिनीकुमारो! तुम दिन में तीन बार आकर यज्ञकर्म की त्रुटियां दूर करो. आज यज्ञ का द्रव्य मधुर रस से तीन बार सींचो. रात और दिन में तीन-तीन बार बलकारक अन्न से हमारा पोषण करो. (३)
O aschinikumaro! You come three times a day and remove the errors of yajnakarma. Today, irrigate the substance of the yajna three times with sweet juice. Nourish us with strong food three times at night and a day. (3)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिर्व॒र्तिर्या॑तं॒ त्रिरनु॑व्रते ज॒ने त्रिः सु॑प्रा॒व्ये॑ त्रे॒धेव॑ शिक्षतम् । त्रिर्ना॒न्द्यं॑ वहतमश्विना यु॒वं त्रिः पृक्षो॑ अ॒स्मे अ॒क्षरे॑व पिन्वतम् ॥ (४)
हे अश्चिनीकुमारो! हमारे निवासस्थान में तीन बार आओ. हमारे अनुकूल कार्य करने वाले मनुष्य के पास तीन बार आओ. जो लोग तुम्हारे द्वारा रक्षणीय हैं, उनके पास तीन बार आओ. हमें तीन प्रकार से शिक्षा दो. हमें तीन बार प्रसन्नरताकारक फल दो. जिस प्रकार मेघ जल देते हैं, उसी प्रकार तुम हमें तीन बार जल दो. (४)
O aschinikumaro! Come to our residence three times. Come to the man who works in our favor three times. Those who are protectable by you, come to them three times. Teach us in three ways. Give us three times the pleasing fruit. Just as the clouds give us water, so you give us water three times. (4)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिर्नो॑ र॒यिं व॑हतमश्विना यु॒वं त्रिर्दे॒वता॑ता॒ त्रिरु॒ताव॑तं॒ धियः॑ । त्रिः सौ॑भग॒त्वं त्रिरु॒त श्रवां॑सि नस्त्रि॒ष्ठं वां॒ सूरे॑ दुहि॒ता रु॑ह॒द्रथ॑म् ॥ (५)
हे अश्विनीकुमारो! हमें तीन बार धन प्रदान करो. हमारे देवों संबंधी यज्ञ में तीन बार आओ. तीन बार हमारी बुद्धि की रक्षा करो. तीन बार हमारे सौभाग्य की रक्षा करो. हमें तीन बार अन्न दो. तुम्हारे तीन पहिए वाले रथ पर सूर्य की पुत्रियां सवार हैं. (५)
O Ashwinikumaro! Give us three times the money. Come to the yajna of our gods three times. Protect our intelligence three times. Protect our good fortune three times. Give us food three times. On your three-wheeled chariot are the daughters of the sun. (5)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः । ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥ (६)
हे अश्चिनीकुमारो! स्वर्गलोक की ओषधि हमें तीन बार दो. पृथ्वी पर उत्पन्न ओषधि हमें तीन बार दो. आकाश से हमें तीन बार ओषधि दो. हे बृहस्पति के पोषको! हमें वात, पित्त, कफ--इन तीनों धातुओं से संबंधित सुख दो. (६)
O aschinikumaro! Give us the medicine of paradise three times. The medicine produced on earth gives us three times. Give us three doses from the sky. O nourishments of Jupiter! Give us the pleasures related to these three metals - vata, pitta, phlegm. (6)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिर्नो॑ अश्विना यज॒ता दि॒वेदि॑वे॒ परि॑ त्रि॒धातु॑ पृथि॒वीम॑शायतम् । ति॒स्रो ना॑सत्या रथ्या परा॒वत॑ आ॒त्मेव॒ वातः॒ स्वस॑राणि गच्छतम् ॥ (७)
हे अश्चिनीकुमारो! तुम प्रतिदिन यज्ञ में बुलाने योग्य हो. तुम तीन बार धरती पर आकर वेदी पर तीन परतों के रूप में बिछी हुई कुशाओं पर शयन करो. शरीर में जिस प्रकार प्राणवायु आती है, उसी प्रकार तुम तीन यज्ञस्थानों में आओ. (७)
O aschinikumaro! You deserve to be called to the yagna every day. Come to the earth three times and sleep on the altar in the form of three layers. Just as oxygen comes into the body, so you come to the three yagnasthans. (7)

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 34
त्रिर॑श्विना॒ सिन्धु॑भिः स॒प्तमा॑तृभि॒स्त्रय॑ आहा॒वास्त्रे॒धा ह॒विष्कृ॒तम् । ति॒स्रः पृ॑थि॒वीरु॒परि॑ प्र॒वा दि॒वो नाकं॑ रक्षेथे॒ द्युभि॑र॒क्तुभि॑र्हि॒तम् ॥ (८)
हे अश्चिनीकुमारो! सिंधु आदि सात नदियों के जल से तीन सोमाभिषेक हुए हैं. जलों के आधार तीन कलश और तीन सवनों से संबंधित तीन प्रकार की हवि तैयार है. तुमने पृथ्वी आदि तीनों लोकों से ऊपर जाकर दिवसरात्रियुक्त आकाश में सूर्य की रक्षा की थी. (८)
O aschinikumaro! There have been three somabhisheks from the waters of seven rivers like Indus etc. Three types of havi belonging to three kalash and three sawans are prepared at the base of the waters. You went above the three realms of the earth, etc., and protected the sun in the day-night sky. (8)
Page 1 of 2Next →