हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 1.77.2

मंडल 1 → सूक्त 77 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 1)

ऋग्वेद: | सूक्त: 77
यो अ॑ध्व॒रेषु॒ शंत॑म ऋ॒तावा॒ होता॒ तमू॒ नमो॑भि॒रा कृ॑णुध्वम् । अ॒ग्निर्यद्वेर्मर्ता॑य दे॒वान्स चा॒ बोधा॑ति॒ मन॑सा यजाति ॥ (२)
हे यजमानो! जो अग्नि यज्ञों में अतिशय सुखकारी, यथार्थदर्शी और देवों का आह्वान करने वाले हैं, उन्हें स्तुतियों द्वारा हमारे अभिमुख करो. जिस समय अग्नि यजमान के निमित्त देवों के समीप जाते हैं, उस समय वे देवों को यज्ञपात्र जानकर मन से उनकी पूजा करते हैं. (२)
O hosts! Those who are very pleasant, realistic and exhortation of gods in the agni yajnas, face us by praises. At the time when they approach the gods for the sake of the agni host, at that time they worship the gods with their heart by knowing them as yajnapatras. (2)