ऋग्वेद (मंडल 1)
इन्द्र॒ त्वोता॑स॒ आ व॒यं वज्रं॑ घ॒ना द॑दीमहि । जये॑म॒ सं यु॒धि स्पृधः॑ ॥ (३)
हे इंद्र! तुम्हारे द्वारा सुरक्षित होकर हम अत्यंत दृढ़ वज्र को धारण करके अपने से द्वेष करने वाले शत्रुओं को पराजित करेंगे. (३)
O Indra! Secured by you, we will defeat our enemies who hate us by wearing the most firm thunderbolt. (3)