ऋग्वेद (मंडल 1)
या ते॒ धामा॑नि दि॒वि या पृ॑थि॒व्यां या पर्व॑ते॒ष्वोष॑धीष्व॒प्सु । तेभि॑र्नो॒ विश्वैः॑ सु॒मना॒ अहे॑ळ॒न्राज॑न्सोम॒ प्रति॑ ह॒व्या गृ॑भाय ॥ (४)
हे शोभनयुक्त सोम! आकाश, धरती, पर्वतों, ओषधियों एवं जल में वर्तमान अपने तेज से तेजस्वी होकर क्रोध न करते हुए हमारा हव्य स्वीकार करो. (४)
O beautified Mon! Accept our greetings in the sky, the earth, the mountains, the herbs, and the waters, without anger at the present being bright with its brightness. (4)