हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.105.4

मंडल 10 → सूक्त 105 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 105
सचा॒योरिन्द्र॒श्चर्कृ॑ष॒ आँ उ॑पान॒सः स॑प॒र्यन् । न॒दयो॒र्विव्र॑तयोः॒ शूर॒ इन्द्रः॑ ॥ (४)
मानवों की सेवा पाकर इंद्र ने सभी संपत्तियों को एकत्र किया. शूर इंद्र ने शब्द करने वाले एवं विशेषकर्म वाले घोड़ों को वश में किया. (४)
After receiving the service of human beings, Indra collected all the properties. Shur Indra subdued the horses with words and special deeds. (4)