हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.113.5

मंडल 10 → सूक्त 113 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 113
आदिन्द्रः॑ स॒त्रा तवि॑षीरपत्यत॒ वरी॑यो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑बाधत । अवा॑भरद्धृषि॒तो वज्र॑माय॒सं शेवं॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॑ ॥ (५)
इंद्र सहसा विशाल सेनाओं की ओर दौड़े एवं अपनी उत्तम महिमा से धरती-आकाश को बाधा पहुंचाई. शत्रुवध में प्रगल्भ इंद्र ने मित्र, वरुण एवं हव्य देने वाले यजमान को सुख पहुंचाने के लिए लोहे का बना हुआ वञ्र धारण किया. (५)
Indra usually ran towards the great armies and interrupted the earth and the sky with his fine glory. In the enmity, Pragalbha Indra wore a vanar made of iron to bring happiness to his friend, Varuna and the havan-giving host. (5)