हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.115.1

मंडल 10 → सूक्त 115 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 115
चि॒त्र इच्छिशो॒स्तरु॑णस्य व॒क्षथो॒ न यो मा॒तरा॑व॒प्येति॒ धात॑वे । अ॒नू॒धा यदि॒ जीज॑न॒दधा॑ च॒ नु व॒वक्ष॑ स॒द्यो महि॑ दू॒त्यं१॒॑ चर॑न् ॥ (१)
नवीन शिशुरूपी अग्नि का हव्य वहन अत्यंत विचित्र है. यह बालक दूध पीने के लिए अपने माता-पिता के पास नहीं जाता. माता-पिता ने स्तन न होते हुए भी बालक को जन्म दिया है. यह बालक जन्म लेने के बाद ही महान्‌ दूतकर्म का निर्वाह करता है. (१)
The new infantry agni is very strange. This child does not go to his parents to drink milk. Parents have given birth to a child despite not having breasts. This child performs great messengers only after being born. (1)