हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.18.4

मंडल 10 → सूक्त 18 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
इ॒मं जी॒वेभ्यः॑ परि॒धिं द॑धामि॒ मैषां॒ नु गा॒दप॑रो॒ अर्थ॑मे॒तम् । श॒तं जी॑वन्तु श॒रदः॑ पुरू॒चीर॒न्तर्मृ॒त्युं द॑धतां॒ पर्व॑तेन ॥ (४)
मैं जीवित पुत्र-पौत्रों की रक्षा के पत्थर के रूप में मृत्यु की सीमा रखता हूं. कोई अन्य इस मरणमार्ग से न जावे. ये लोग सैकड़ों वर्ष जीवित रहें एवं इस पत्थर के द्वारा मृत्यु को अपने से दूर रखें. (४)
I limit death as a stone of protecting living sons and grandsons. Let no one else go through this moribund path. May these people live hundreds of years and keep death away from themselves through this stone. (4)