हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.53.7

मंडल 10 → सूक्त 53 → श्लोक 7 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 53
अ॒क्षा॒नहो॑ नह्यतनो॒त सो॑म्या॒ इष्कृ॑णुध्वं रश॒ना ओत पिं॑शत । अ॒ष्टाव॑न्धुरं वहता॒भितो॒ रथं॒ येन॑ दे॒वासो॒ अन॑यन्न॒भि प्रि॒यम् ॥ (७)
हे सोमरस के योग्य देवो! तुम रथों में घोड़ों को जोड़ो, लगामें साफ करो एवं घोड़ों को सजाओ. तुम सारथि के बैठने वाले आठ स्थानों से युक्त रथ को सूर्य के साथ यज्ञ में लाओ. इसी रथ के द्वारा देवगण यज्ञ में आते हैं. (७)
O gods worthy of somers! You add horses to the chariots, clean the decks and decorate the horses. You bring the chariot containing the eight places of sarathi to the yagna with the sun. It is through this chariot that the Devas come to the yagna. (7)