हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.63.14

मंडल 10 → सूक्त 63 → श्लोक 14 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
यं दे॑वा॒सोऽव॑थ॒ वाज॑सातौ॒ यं शूर॑साता मरुतो हि॒ते धने॑ । प्रा॒त॒र्यावा॑णं॒ रथ॑मिन्द्र सान॒सिमरि॑ष्यन्त॒मा रु॑हेमा स्व॒स्तये॑ ॥ (१४)
हे देवो! अन्नलाभ के लिए तुम जिसकी रक्षा करते हो, हे मरुतो! युद्ध में संचित धन पाने के लिए तुम जिस रथ की रक्षा करते हो, हे इंद्र! उसी प्रातःकाल युद्ध में जाने वाले, सेवन करने योग्य एवं ध्वस्त न होने वाले रथ पर हम कल्याण के लिए चढ़ें. (१४)
Oh, God! What you protect for the benefit of food, O Maruto! The chariot you protect to get the wealth accumulated in the war, O Indra! That same morning, we climb the chariot that goes into battle, is unsustainable and undeterminable for the welfare of us. (14)